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एक्ट्रेस जिसके पोस्टर अमेरिका में भी बिके:कज्जनबाई के अफेयर्स बने पहले फिल्मी गॉसिप, 30 की उम्र में मौत आज भी रहस्य

आज अनसुनी दास्तानें में बात कज्जनबाई की। ये पहली महिला सुपरस्टार थीं, जिनकी फिल्में बार-बार देखने के लिए लोग घर के सामान तक गिरवी रख देते थे। कज्जनबाई लखनऊ की तवायफ सुग्गनबाई और एक नवाब की बेटी थीं। इनकी आवाज और अदाकारी में ऐसा जादू था कि 15 साल की उम्र में ये स्टार स्टेज आर्टिस्ट बन गईं। स्टेज पर काम देखकर ही इन्हें फिल्में मिलीं। आवाज में तो इतनी कशिश थी कि इनकी पहली ही फिल्म शिरी-फरहाद में 42 गाने थे। ये मशहूर गायिका नूरजहां की संगीत गुरु भी थीं, रोज उनसे 12 घंटे रियाज करवाती थीं। कोलकाता में एक आलीशान हवेली में रहती थीं कज्जनबाई। इन्हें जानवर पालने का शौक इस कदर था कि दो टाइगर पाल रखे थे।

ये पहली एक्ट्रेस थीं जिनके अफेयर्स के चर्चे फिल्म इंडस्ट्री की सुर्खियां बने थे। फैंस में दीवानगी का आलम ऐसा था कि एक तांगेवाले ने इनकी फिल्म 22 बार देखी, जिसके लिए उसने अपने घोड़े तक गिरवी रख दिए। मगर कज्जनबाई का ये स्टारडम बहुत सालों तक कायम ना रह सका। थिएटर मालिक से कानूनी लड़ाई हुई, जिसमें इनकी हवेली बिक गई। करियर बचाने की जद्दोजहद उन्हें मौत तक ले आई। हमेशा सुर्खियों में रहने वाली कज्जन 30 की उम्र में दुनिया छोड़ गईं। हैरान करने वाली बात ये है कि इनकी मौत आज भी एक रहस्य है।

तो, चलिए आज की अनसुनी दास्तानें में बात करते हैं फिल्म इंडस्ट्री की जहांआरा कही जाने वाली कज्जनबाई की….

कोठे से निकलकर बनीं सबसे कामयाब स्टेज सिंगर

15 फरवरी 1915 को लखनऊ की मशहूर तवायफ सुग्गन बेगम के घर बेटी का जन्म हुआ, जिसे नाम दिया गया जहांआरा कज्जन, जो आगे चलकर कज्जनबाई नाम से मशहूर हुई। सुग्गन अपनी खूबसूरती और गानों के लिए मशहूर थीं। उनकी महफिलों में नामी लोग शिरकत करते थे। भागलपुर के नवाज छम्मी साहेब इनकी महफिल के स्थायी मेहमान थे, जिनसे ये चर्चा में रहती थीं। कहा जाता है कि कज्जन नवाज छम्मी की ही बेटी थीं। तवायफों को शादी करने की इजाजत नहीं थी, लेकिन उनका रिश्ता सार्वजनिक होता था।

जब 20वीं सदी में तवायफों और कोठों का विरोध हुआ तो सारी तवायफें स्टेज आर्टिस्ट बन गईं। बदलते दौर में कज्जनबाई भी स्टेज आर्टिस्ट बनीं। सुग्गन ने अपनी बेटी कज्जन को घर में रहते हुए ही इंग्लिश, उर्दू लिटरेचर और पटना के उस्ताद हुसैन खान से क्लासिकल सिंगिंग की ट्रेनिंग दिलवाई। कज्जन को इंग्लिश में महारत हासिल थी। वो कोलकाता के नामी क्लब में परफॉर्मेंस देने वाली रेगुलर स्टेज परफॉर्मर थीं।

15 साल की उम्र में स्टार परफॉर्मर थीं कज्जन

कज्जन को बचपन से ही शायरी लिखने का शौक था, वो अदा के नाम से शायरी लिखती थीं, जो उस जमाने की उर्दू मैगजीन में छपती थी। कज्जन की गायिकी के गुर से इम्प्रेस होकर उन्हें 1920 के दौर में पटना की एक थिएटर कंपनी ने नौकरी दी। ये वो समय था, जब महिलाओं को स्टेज परफॉर्मेंस की अनुमति नहीं थी, ऐसे में कज्जनबाई पहली महिला बनीं, जिन्हें स्टेज परफॉर्मेंस देने की अनुमति मिली थी।

प्ले में कज्जनबाई चाकू से खतरनाक करतब दिखाया करती थीं, जिसे देखने बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठा हुआ करती थी। कज्जन को भीड़ इकट्ठा करते देख एक दिन प्रोड्यूसर जमशेद मदन ने उन्हें अपनी फिल्म में रोल दिया। ये फिल्म थी भारत की दूसरी बोलती फिल्म शिरीन फरहाद।

आगे कज्जन ने कोलकाता में मदन थिएटर की अल्फ्रेड कंपनी जॉइन कर ली। इस ग्रुप के साथ काम करते हुए कज्जन कंपनी की सबसे फेमस सिंगर बन गईं, जिनके गाने सुनने के लिए लोग दूर शहरों से आया करते थे। ये बात करीब 1925-30 के बीच की होगी, जब करीब 15 साल की रहीं कज्जन को हर परफॉर्मेंस के 250 रुपए मिला करते थे।

हिंदी सिनेमा का संगीत से परिचय करवाया

1931 से भारत में बोलती फिल्में बननी शुरू हुईं। पहली बोलती फिल्म रही आलम आरा। मदन थिएटर ने भी आलम आरा की रिलीज के चंद हफ्तों बाद शिरीन फरहाद नाम की बोलती फिल्म बनाई, जिसमें पॉपुलर स्टेज सिंगर्स कज्जनबाई और निसार के 42 गाने डाले गए। टेक्निकली और कमाई में ये आलम आरा से भी बेहतरीन फिल्म रही, लेकिन चंद हफ्तों बाद रिलीज होने पर ये भारत की पहली बोलती फिल्म नहीं बन सकी।

ये प्ले पर बनी फिल्म थी, जिसने 42 गानों के साथ इतिहास रचा। इस फिल्म के बाद महज 16 साल की कज्जनबाई हिंदी सिनेमा की पहली सुपरस्टार बन गईं। शिरीन फरहाद फिल्म इतनी कामयाब रही कि लाहौर के एक तांगेवाले ने 22 बार ये फिल्म देखने के लिए अपने घोड़े तक गिरवी रख दिए थे।

कज्जन की दूसरी फिल्म रही लैला मजनू, जो सुपरहिट साबित हुई। अगली फिल्म इंद्रसभा में 72 गाने थे, जिसमें से ज्यादातर कज्जन ने ही गाए थे। ये साढ़े तीन घंटे की फिल्म थी, जो हिंदी सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म कही गई। आगे कज्जन बिलवामंगल, शकुंतला, अलीबाबा और चालीस चोर, आंख का नशा, जहरी सांप जैसी फिल्मों में नजर आईं। 1931-1936 तक कज्जनबाई ने कामयाबी का खूब स्वाद चखा।

घर में पाल रखे थे बाघ के बच्चे

लगातार हिट फिल्में और स्टेज शो करते हुए कज्जनबाई नए हिंदी सिनेमा की सुपरस्टार और सबसे रईस एक्ट्रेस बनीं। ये कोलकाता की बड़ी हवेली में शान-ओ-शौकत से भरी जिंदगी जीती थीं। लग्जरी गाड़ियां, घर में सारी सुविधाएं और कई जानवर थे। कज्जन को जानवरों से खासा लगाव था, उन्होंने अपने घर में दो बाघ पाल रखे थे। कज्जन को उस जमाने की सबसे मॉडर्न और फैशनेबल लड़की के रूप में देशभर में पहचान मिली।

विदेश में पॉपुलर होने वाली पहली हीरोइन थीं कज्जन

पहली फिल्म के रिलीज से पहले ही कज्जनबाई मैगजीन का नामी चेहरा हुआ करती थीं। उन्होंने एक खूबसूरत फोटोशूट करवाया था। मैगजीन में तस्वीर छपते ही हर छोटे-बड़े तबके के लोग कज्जन के फैशन को फॉलो करने लगे। एक तस्वीर में कज्जन खूबसूरत मेकअप, ईयररिंग, नोज पिन और घुंघराले हेयरस्टाइल में लेस वाला डिजाइनर ब्लाउज और साड़ी पहने नजर आईं। इस तस्वीर को न्यूयॉर्क की द क्राइसिस मैगजीन ने फेस पाउडर और हेयर प्रोडक्ट के एडवर्टाइजमेंट में इस्तेमाल किया।

इजिप्ट के बाजार में कज्जन की तस्वीर

पॉपुलर सिंगिंग स्टार नूरजहां के पति और फिल्म जीनत (1945) के डायरेक्टर शौकत रिज्वी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा- मेरे रिश्तेदार इजिप्ट से लौटकर आए थे, उन्होंने बताया कि इजिप्ट में बिकने वाले सिगरेट के पैकेट पर कज्जनबाई की तस्वीर छपी थी। वो रिश्तेदार सिगरेट के पैकेट से तस्वीर निकालकर लाए थे।

भारत की सबसे खूबसूरत अदाकार बनीं

बेहतरीन गायिकी और एक्टिंग के अलावा कज्जन की खूबसूरती भी खूब चर्चा में रही। इनके चेहरे की रंगत, नैन-नक्श, पहनावा, हेयरस्टाइल और कपड़े पहनने का अंदाज भी उस जमाने से काफी आगे था। दुनियाभर की खूबसूरत महिलाओं पर लिखी गई किताब- मॉडर्न गर्ल अराउंड द वर्ल्डः कंजम्प्शन, मॉडर्निटी एंड ग्लोबलाइजेशन में प्रोफेसर प्रीति राममूर्ति ने कज्जनबाई की पर्सनैलिटी का जिक्र किया। ये उस जमाने की भारत की सबसे मॉडर्न महिला थीं। मेकअप करना, फाइन मस्कारा लगाना, अपने होठों को शार्प शेप देकर गहरे रंग की लिपस्टिक लगाना, कर्ली बालों को जमाना, लेसी डिजाइनर ब्लाउज पहनना, ये हर चीज उनकी सुंदरता निखारती थी।

बदलते दौर में कम हुआ कज्जन का जादू

1935 आते-आते लव स्टोरी, माइथोलॉजिकल कहानियां, ड्रामा और गानों ने दर्शकों को इम्प्रेस करना बंद कर दिया। कई बड़ी थिएटर कंपनियां बंद होने की कगार पर आ गईं, जिनमें मदन थिएटर कंपनी भी शामिल थी। फिल्में चलना बंद हुईं तो पुराने स्टाइल वाली कज्जनबाई की कामयाबी भी धुंधली पड़ने लगी। नए प्रोड्यूसर्स ने उन्हें काम देना बंद कर दिया।

कंगाली के दौर में हवेली बेचने को मजबूर थीं कज्जन

साल 1936 में मदन थिएटर बिक गया। नए मालिक कर्णी सेठ हो गए, जिनसे कज्जन का खूब झगड़ा हुआ। बढ़ते झगड़ों के कारण उन्होंने थिएटर छोड़ने का फैसला लिया। कर्णी सेठ ने कज्जन के खिलाफ लीगल लड़ाई छेड़ दी। ये लड़ाई ऐसी बढ़ी कि खुद को सही साबित करने में कज्जन बर्बादी की कगार पर आ खड़ी हुईं।

ऐसा आर्थिक संकट आया कि उन्हें कोलकाता की अपनी हवेली और काफी दूसरी संपत्ति तक बेचनी पड़ी। आखिरकार कज्जन ने थक-हारकर 1938 में कोलकाता छोड़ने का फैसला किया।

करियर की दूसरी पारी और नई कंपनी

कज्जनबाई ने 1938 में कोलकाता छोड़ा और सीधे मुंबई नगरी (उस समय बॉम्बे) पहुंच गईं। अपनी बची-खुची संपत्ति बेचकर जो 60 हजार रुपए कज्जन के पास बचे थे, उससे उन्होंने मुंबई में ही जहानआरा थिएट्रिकल कंपनी शुरू की।

दोबारा करियर पटरी पर लाने के लिए कज्जन अब अपने फेमस शोज के बड़े शास्त्रीय गानों को छोटा करके पूरे भारत में परफॉर्मेंस देने लगीं। लाहौर, अमृतसर, मुल्तान, दिल्ली और मुंबई में बड़ी महफिलों में इनकी परफॉर्मेंस हुई, लेकिन इस समय तक कज्जन की तबीयत ने उनका साथ देना छोड़ दिया।

दो नाकाम रिश्ते और अधूरी जिंदगी

करियर में शोहरत और कामयाबी देखने वालीं कज्जनबाई अपनी रंगीन जिंदगी से भी लोगों का ध्यान खींच लिया करती थीं। इनका नाम सबसे पहले फिदा हुसैन से जुड़ा जो उनके को-स्टार और थिएटर डायरेक्टर हुआ करते थे।

फिदा कई बार अपने और कज्जन के रिश्ते पर भी खुलकर बोलते रहे। आगे चलकर कज्जन का नाम उस जमाने के सबसे हैंडसम एक्टर रहे नज्म उल हसन से भी जुड़ा। वही नज्म उल हसन जिन्हें फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन सिनेमा देविका रानी से अफेयर के कारण बॉम्बे टॉकीज थिएटर कंपनी से भगा दिया गया था।

कई नामी लोगों से नाम जुड़ने के बावजूद कज्जनबाई ने कभी शादी नहीं की। शायद शादी ना करने का एक अहम कारण उनकी बीमारी भी रही।

बिगड़ती तबीयत से फिर डगमगाया करियर

कज्जन की मां सुग्गन बाई भी उनकी बिगड़ती तबीयत देख उनके साथ रहने मुंबई आ गईं। स्टेज शो जिंदगी चलाने का एकमात्र जरिया था, लेकिन अब वो भी बंद करना पड़ा। 60 हजार रुपए डूब गए और फिर शुरू हुई करियर पर वापसी करने की जद्दोजहद।

यहां उस जमाने के मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी ने उन्हें खूब सहारा दिया। अपने निर्देशन में बनने वाली फिल्मों में कज्जन को काम देने लगे। 1941-1944 के दौरान कज्जन ने 6 फिल्मों में काम किया, जिनमें से ज्यादातर फिल्मों में उनके छोटे-मोटे रोल रहे। इस समय उनकी इकलौती बड़ी फिल्म पृथ्वी वल्लभ रही, जिसमें उनका बड़ा रोल था। कोलकाता में शाही जिंदगी जीने वाली कज्जन को मुंबई में कभी बड़ी पहचान नहीं मिल सकी।

अचानक फिल्मों से बनाई दूरी

1944 की फिल्म मुमताज महल के बाद अचानक ही कज्जनबाई ने फिल्मों से दूरी बना ली। कुछ लेख में हुए जिक्र के अनुसार फिल्में छोड़ने का कारण उनकी बिगड़ती तबीयत थी, वहीं कुछ का मानना है कि कज्जनबाई का फिल्में छोड़ने का कोई पुख्ता कारण कभी सामने नहीं आ सका।

आज भी रहस्य है कज्जनबाई की मौत

1945 तक अखबारों और फिल्म मैगजींस का भारत से परिचय हो चुका था, इसके बावजूद किसी को कज्जनबाई की मौत की तारीख नहीं पता है। इससे भी बड़ी बात ये कि मौत का कारण भी आज तक रहस्य है। कुछ राइटर्स के अनुसार कज्जनबाई साल 1941 से ही काफी बीमार रहने लगी थीं, जिससे उनका निधन हुआ। वहीं, कुछ का कहना है कि कज्जन को कैंसर था। मौत के वक्त कज्जन महज 30 साल की थीं।

ऐसी ही हस्तियों की ये अनसुनी दास्तानें और पढ़ें…

सबसे महंगी सिंगर-एक्ट्रेस थीं कानन देवी:रिश्तेदारों ने निकाला तो कभी दूसरे के घर में नहीं रहीं, पतियों को भी अपने घर में रखा

एक छोटी बच्ची जिसकी मां को रिश्तेदारों ने एक चीनी की प्लेट टूट जाने पर इतना जलील किया कि उसे मां को लेकर रिश्तेदारों का वो घर छोड़ना पड़ा। वहां उनकी औकात नौकरों से ज्यादा नहीं थी। इस बच्ची ने रिश्तेदारों का ये रवैया देखकर ठान लिया था कि अब भूखे मर जाना है, लेकिन किसी के घर में पनाह नहीं लेनी।

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